डायरी जुलाई 2022 : आलोचना सहन करने कीभी हिम्मत होनी चाहिए
डायरी सखि,
आजकल सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की टिप्पणियां बहुत अधिक सुर्खियां बटोर रही हैं । जिस दिन उन्होंने ये टिप्पणियां की थी , वहां पर मौजूद मीडिया ने उन्हें लपक लिया और तुरंत ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी । जज साहेबान को जब पता चला कि उनकी टिप्पणियां ख्याति पा गई हैं तो वे इस अलौकिक समाचार से अभिभूत हो गये । दसों दिशाओं में वे टिप्पणियां गूंजने लगी । जिस प्रकार एक शून्य में कोई ध्वनि उछाली जाती है तो वह ध्वनि उसी स्थान पर वापस लौटकर आ जाती है और वैसी ही प्रतिध्वनि उत्पन्न हो जाती है ।
इन टिप्पणियों को करते वक्त जज साहेबान का उद्देश्य रहा होगा कि वे भारत के कोने कोने में बसे लोगों के हृदय में बस जायें । शायद ये भी रहा हो कि पूरी धरती के लोगों के दिल दिमाग में उनकी पैठ हो जाये । क्योंकि आजकल स्थानीय कुछ भी नहीं है । सब कुछ विश्व व्यापी हो चुका है । और फिर उस टिप्पणी का स्वागत कुछ आतंकवादी संगठनों द्वारा भी किया गया है । हो सकता है कि जज साहेबान उन आतंकवादी संगठनों को यह बताना चाहते हों कि भारत की न्यायपालिका कितनी स्वतंत्र है, कितनी निर्भीक है, कितनी निष्पक्ष है और कितनी अद्भुत है । अद्भुत इसलिए कि जो टिप्पणियां उन्होंने अपने श्री मुख से की वे उनके श्री करों से लिखे हुए श्री निर्णय का अभिन्न अंग नहीं थी ।
इसका अभिप्राय यह है सखि कि वे टिप्पणियां संविधान की दृष्टि से विधिसम्मत नहीं थी, गैर जरूरी थीं । अगर विधिसम्मत होतीं तो निर्णय का हिस्सा होती । लेकिन दोनो महा सम्मानीय भगवान से भी बड़े जज साहेबानों ने वे टिप्पणियां अपने श्री मुख से कीं । मीडिया के सामने की । जब कोई बात मीडिया के सामने की जाती है तो इसका मतलब यह होता है कि वह बात इतनी महत्वपूर्ण है कि मीडिया के माध्यम से वह बात जन जन तक जाये । तो महा जज साहेबानों ने वह टिप्पणी जानबूझकर की जिससे उनके इस "अद्भुत कृत्य" की "ख्याति" दिग्दिगंत तक प्रसारित हो ।
मीडिया ने उनकी वह ख्वाहिश पूरी कर दी । दोनो प्रात: स्मरणीय महा जज साहेबान रातों रात वंदनीय , पूजनीय , आदरणीय , सम्माननीय बन गये । कोटि कोटि जन गण मुक्त कंठ से उन दोनों महा जज साहेबान का गुणगान कर रहा है । उनकी प्रशस्ति में सारा सोशल मीडिया रंगा पड़ा है । ऐसा अभूतपूर्व पल सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में आदिनांक तक नहीं आया है । भविष्य में क्या होगा कुछ पता नहीं । हो सकता है किसी भावी जज को अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज करवाना हो तो वह इससे भी ज्यादा विवादित टिप्पणी देकर ख्यातिप्राप्त हो जायें । मगर आज तो इन दोनों महा जज साहेबान ने विश्व पटल पर जो ख्याति प्राप्त की है वह अलौकिक है । कुछ दूसरे जज साहेबान भी हो सकता है अब सोच रहे हों कि वे भी ऐसी ही कुछ टिप्पणियां कर दें और "देवत्व" को प्राप्त हो जायें ।
पर एक बात दिमाग में आती है सखि, कि क्या वे टिप्पणियां इतनी अधिक आवश्यक थीं कि उनके बिना काम चल ही नहीं सकता था ? यदि हां , तो उन्हें फैसले में क्यों नहीं लिखा गया ? और यह और भी आवश्यक है कि जो प्रकरण उन दोनों महानुभावों के पास था ही नहीं उस पर वे टिप्पणियां की गई थीं । क्या वे ऐसा करने के अधिकारी थे ?
जज साहेबानों का कथन है कि पूरे देश में जो घटनाएं घट रही हैं वे सब उस नूपुर शर्मा के बयानों की वजह से है । शुक्र है कि जज साहेबान ने यह नहीं कहा कि महमूद गजनवी ने इस बयान से कुपित होकर सोमनाथ मंदिर पर 17 बार आक्रमण किया था । वैसे अगर दोनों जज साहेबान ऐसी टिप्पणी कर भी देते तो कोई उनका क्या बिगाड़ लेता ? जज भी ये जज ही नियुक्त करते हैं । सारी जगह सूचना के अधिकार के तहत सूचना प्राप्त की जा सकती है सिवाय सुप्रीम कोर्ट के । इसका क्या मतलब है सखि ? यही न कि सुप्रीम कोर्ट में खुद पारदर्शिता नहीं है और बात करता है न्याय की ? इससे बड़ा भी कोई मजाक हो सकता है क्या सखि ?
वैसे एक बात अवश्य है सखि कि जो बात बात पर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की दुहाई दिया करता है , यही सुप्रीम कोर्ट, वही कह रहा है कि सोशल मीडिया पर लगाम लगाई जाये । किसलिए ? शायद इसलिए कि ऐसी अनावश्यक, पक्षपाती टिप्पणियों की आलोचना सोशल साइट्स पर नहीं की जा सके । जब टिप्पणी करने की हिम्मत करते हो तो आलोचना सहन करने की हिम्मत भी होनी चाहिए । क्यों है न सखि ?
हरिशंकर गोयल "हरि"
5.7.22
Radhika
09-Mar-2023 12:40 PM
Nice
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Saba Rahman
06-Jul-2022 08:48 PM
Nyc
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Seema Priyadarshini sahay
06-Jul-2022 07:20 PM
बेहतरीन
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